आश्रमों के सेक्स के अखाड़े बनने से लेकर हत्याओं, जोर-जबरदस्ती, अपहरण और भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगते रहे हैं। चाहे आसाराम बापू के आश्रम में चार लोगों की रहस्यमयी मौत का मामला हो या फिर बाबा रामदव पर गुरू शंकर देव की हत्या पर शक या स्वामी नित्यानंद का सेक्स स्केंडल, – ये सारे मामले उजले कपड़ों पर छींटे डालते हैं। न्यूज चैनल भी इन पर सीधे हाथ डालने में थोड़ा डरते हैं, ठीक उसी तरह जैसे क बाबा लोगों का संवाद भी नाप-तौल के कई पैमानों से होकर गुजरता है। इन बाबा लोगों ने शुरूआती दिनों में कोक और पेप्सी पर भी ताने कसे लेकिन वे जान गए कि कारपोरेट जगत को नाराज न करने में ही भलाई है।
इन सबके बीच नैतकिता के दायरे से कई सवाल उभर कर आते हैं। यह बात जरूर सोचने की है कि क्या जरूरत से ज्यादा परोसे जाने वाला यह डर, विश्वास या अंधविश्वास न्यूज चैनलों के कर्तव्यों की परिधि में आता है। बाबा लोगों के पास धार्मिक चैनलों का प्लैटफार्म है ही और वे ब्रांड एंबैसेडर के तौर पर वहां अपना तंबू तान कर दिन भर बैठते भी हैं। ऐसे में न्यूज चैनलों को क्या अपनी खुद की गढ़ी इस मजबूरी से बाहर आने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कभी राजू का मसखरापन तो कभी राखी की नौटंकी दिखाते इन चैनलों को क्या अब न्यूजवाला बने रहने का पाठ दोबारा याद करने की जरूरत तो नहीं। क्या अब यह सोचने का वक्त नहीं है कि उन्हें अब वही करना चाहिए जिसके लिए भारत सरकार ने उन्हें लाइसेंस दे रखा है।
इन सबके बीच नैतकिता के दायरे से कई सवाल उभर कर आते हैं। यह बात जरूर सोचने की है कि क्या जरूरत से ज्यादा परोसे जाने वाला यह डर, विश्वास या अंधविश्वास न्यूज चैनलों के कर्तव्यों की परिधि में आता है। बाबा लोगों के पास धार्मिक चैनलों का प्लैटफार्म है ही और वे ब्रांड एंबैसेडर के तौर पर वहां अपना तंबू तान कर दिन भर बैठते भी हैं। ऐसे में न्यूज चैनलों को क्या अपनी खुद की गढ़ी इस मजबूरी से बाहर आने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। कभी राजू का मसखरापन तो कभी राखी की नौटंकी दिखाते इन चैनलों को क्या अब न्यूजवाला बने रहने का पाठ दोबारा याद करने की जरूरत तो नहीं। क्या अब यह सोचने का वक्त नहीं है कि उन्हें अब वही करना चाहिए जिसके लिए भारत सरकार ने उन्हें लाइसेंस दे रखा है।
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