Sunday, May 6, 2012

बदलते परिवेश में पाश्चातय संस्कृति के प्रभाव से हमारी संस्कृति तार-तार होने लगी है : लोकायुक्त प्रीतम पाल


करनाल, (इंडिया विसन) : भ्रष्टाचार के स्थाई समाधान के लिए शिक्षा-प्रणाली में आध्यात्मिक, वैदिक , नैतिक और सामाजिक मूल्यों पर आधारित सार्थक और सारगर्भित चरित्र-निर्माण के पाठयक्रम, बुनियादी स्तर पर शुरू करने की जरूरत है, तभी भ्रष्टाचार जैसी बुराई को जड़ से खत्म किया जा सकता है। ये उद्गार पंजाब एवं हरियाणा के पूर्व न्यायाधीश, लोकायुक्त प्रीतम पाल ने जिला के गांव नली खुर्द में स्थित महर्षि पाणिनि आर्ष गुरूकुल के वार्षिकोत्सव में हरियाणा सहित विभिन्न राज्यों से आए आचार्याे, विद्यार्थियों तथा  उपस्थित अन्य श्रोतावृन्द को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। 
श्री प्रीतम पाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिक्षा-प्रणाली में चरित्र-निर्माण के पाठयक्रम शुरू करने से सामाजिक विकास सुदृढ़ होगा, चूंकि स्वस्थ चरित्र-निर्माण भावी पीढ़ी की सोच में जो परिवर्तन लायेगा वहीं सोच और सीख समाज के समुचित संवर्धन में अहम भूमिका अदा करेगी। उन्होंने याद दिलाया कि किसी जमाने में हमारी आध्यात्मिक और पौराणिक सोच के चलते समूची दुनिया में भारत को विश्व गुरू का दर्जा प्राप्त था। ज्ञान और विज्ञान के बड़े-बड़े केन्द्र इस देश में हुआ करते थे, जिनमें विदेशी भी शिक्षा ग्रहण करने आते थे, लेकिन बदलते परिवेश में पाश्चातय संस्कृति के प्रभाव से हमारी संस्कृति तार-तार होने लगी है। 
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों को इस बात का पूरा आभास था कि भारत की सभ्यता और संस्कृति हमेशा से ही सशक्त और मार्गदर्शी रही है, इसलिए यहां की जनता को अधिक दिनों तक दबाया नहीं जा सकता इसलिए उन्होंने अपनी संस्कृति की सोच और वहां के संस्कार हमारे समाज में थोपने के प्रयास किए जिसके चलते हमारी संस्कृति और समाज का आईना पहले की अपेक्षा उज्ज्वल नहीं रहा। उन्होंने अपील की कि यदि भ्रष्टाचारी एकजुट हो सकते हैं तो भ्रष्टाचार का जवाब देने के लिए समाज के अच्छे लोग भी एकजुट होकर कार्य करें तभी हम नैतिक और सामाजिक मूल्यों को सहेजने और संवारने में सफल होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि स्वस्थ चरित्र-निर्माण के लिए स्कूली स्तर पर संस्कृति और उच्च संस्कारों पर आधारित कमेटियों का गठन किया जाना चाहिए ताकि ये कमेटियां समय-समय पर देश की भावी पीढियों को सामाजिक मूल्यों के दिग्दर्शन कराती रहे। 
उन्होंने कहा कि हमारे वेद और उपनिषद समुचित सृष्टि का आधार माने गए हैं। इनका अध्यन्न करने से भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में पूरी जानकारी हासिल हो जाती है लेकिन इस कार्य के लिए एकाग्रभाव से अध्यन्न करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा के इस देश  में हर प्रकार की बीमारियों का ईलाज संभव है लेकिन जरूरत इस बात की है कि इन विषयो पर लगन से काम करते हुए इसे और बढ़ावा दिया जाए। उन्होंने इस मौके पर अपने ऐच्छिक कोष से महर्षि पाणिनि आर्ष गुरूकुल में गऊशाला के लिए 11 हजार रुपये का चैक भी प्रदान किया। 
गुरूकुल के संचालक स्वामी सम्पूर्णानंद सरस्वती ने गुरूकुल की ओर से लोकायुक्त प्रीतमपाल को स्मृति-चिन्ह भेंट करके सम्मानित किया। इस अवसर पर प्रोफेसर के.बी. सुब्ब रायुडु,  कुलसचिव राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नवदेहली सहित सभी आगन्तुक मेहमानों को स्मृति-चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इससे पूर्व गुरूकुल में स्थित यज्ञशाला में वैद्धिक मंत्रों से युक्त यज्ञ का आयोजन भी किया गया इसमें विभिन्न क्षेत्रों से आए आचार्यो व अन्य लोगों ने भाग लिया। वार्षिकोत्सव में आचार्य विष्णु मित्र वेदार्थी, डाक्टर यश देव शास्त्री, पदमसेन गुप्ता, श्रीमती माता विद्या मल्होत्रा, हरियाणा विद्युत नियामक आयोग के सदस्य रामपाल, डाक्टर वी.कुलवंत, रविन्द्र तलवार, श्री बुद्धिराजा एवं श्री प्रियव्रत, आर्य समाज दिल्ली के प्रधान धर्मपाल, के.वी.के. स्याल, सुरेन्द्र नरवाल, लुधियाना से मुनीष मदान, आचार्य विवेक चैतन्य तथा आचार्य प्रदीप कुमार भी उपस्थित रहे। 

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