Sunday, January 19, 2014

सरकारी नौकरी के बाद याद आने लगी जनसेवा की

पद पर रहे तो खुद की 

सेवा की, अब चिंता 

भविष्य की

करनाल, 19 जनवरी (अनिल लाम्बा): आम हो या खास, सभी को साथ लेकर चलने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी अब खास नौकरशाहों की वैसाखियों को प्रदेश में तलाश रही है। इस पार्टी का जन्म ही पूर्व नौकरशाहों के द्वारा हुआ। भले ही इसकी आईडलोजी किसी समय में अन्ना हजारे के साथ मिलती रही हो, लेकिन आज यह पार्टी नौकरशाहों का भविष्य सुरक्षित करने का माध्यम बनती जा रही है। भले ही आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल रहें हो। वह भी कभी आयकर विभाग में नौकरशाह थे। आज उनकी पत्नी आयकर विभाग में उच्च पद पर है। आम आदमी शुरू से ही ब्यूरो क्रेसी से परेशान रहा है। आजादी के साढ़े-6 दशक बाद भी देश का संचालन 5 सितारा सुविधाओं के साथ ब्यूरो क्रेट कर रहे हैं। आज देश को लाल फीताशाही से मुक्त करवाने की जरूरत है। आम आदमी की पार्टी ने पूर्व नौकरशाहों को अपनी पार्टी में स्थान देकर यह बात साफ कर दी कि यह आम आदमी की नही बल्कि खास की पार्टी है। जिनके जुल्मों सितम से आम आदमी कराहने लगा था। लोगों की पीठों पर आज भी उनकी लाठियों के निशान है। आज वही देश के कर्णधार बनने का दावा कर रहे हैं। आम आदमी की पार्टी का जन्म जिन हालात में हुआ उससे लगता था कि आजादी के बाद दूसरी आजादी की लड़ाई सफल होगी। काले अंग्रेजों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी, लेकिन यहां न तो जनक्रांति हुई और न ही व्यवस्थाएं बदली। काले अंग्रेज फिर से लोकतंत्र के उत्सव में भाग लेने के लिए आम आदमी की पार्टी के स्तंभ बन गए। सरकारी नौकरी के दौरान उन्होंने भरपूर हाकिमों के सम्मान सुविधांए ली। जब रिटायरमैंट के बाद सुविधाएं नही रही, तो जनसेवा का नाम देकर अपनी सुविधाओं के लिए संसद और विधानसभा में जाने के लिए पिछले दरवाजे को तलाशने लगे। ब्यूरो क्रेसी जिस तरह से देश पर हावी हुई। अंग्रेज हाकिम चले गए, काले हाकिम आ गए, लेकिन मानसिकता आज भी उनकी अंग्रेजों के सम्मान है। देश को आजादी के बाद आज तक इस तरह की मानसिकता वालों से आजादी नही मिली। अन्ना हजारे के साथ अरविंद केजरीवाल मिलकर कभी गांवों, खलिहान और मजदूर की बात किया करते थे, लेकिन आज मजदूर नही उन अफसरों का सहारा लिया जा रहा है। जिनके सताए लोग आज भी कराह रहे हैं। इससे पहले भारत के पूर्व प्रधानमंत्री रहे स्वर्गीय देवी लाल लोकराज और लोक परम्परा की बात करते ही नही थे निभाते भी थे। उन्होंने कभी माली को विधानसभा में पहुंचाया तो कभी बैंड बजाने वाले को। यहंा तक कि ताऊ देवीलाल की परम्परा में चलते हुए ओमप्रकाश चौटाला ने भी ईश्वर सिंह पलाका जैसे खेतिहर मजदूर को भी हरियाणा की विधानसभा में पहुंचा दिया। इसलिए आज भी इनैलों के दो दिग्गज नेता जो जेल में हैं, जेल में होने के बावजूद भी इनैलों प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल है। इनैलों पार्टी का कार्यकत्र्ता आज भी हौंसले से लबरेज है। इनैलों पार्टी ने कभी भी नौकरशाहों को महत्त्व नही दिया, बल्कि आम कार्यकत्र्ताओं को महत्त्व दिया। यही कारण है कि आज भी इनका वजूद कायम है। आम आदमी की पार्टी का सत्य दिल्ली विधानसभा में पहुंचने के बाद उजागर होना शुरू हो गया है। कभी भ्रष्टाचारी नेताओं के खिलाफ सबूत के साथ कार्रवाई का दावा करने वाले केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठते ही उन भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने की बजाए विपक्ष से सबूत मांगने लगे। जिन नेताओं को वह भ्रष्टाचारी कहते थे। उन्हीं की वैसाखियों पर सरकार बना ली। इसके बाद हरियाणा में भी परिवर्तन का दावा करने वाली आम आदमी की पार्टी पूर्व नौकरशाहों के कंधों पर सवार होकर सता तक पहुंचने का सपना देख रही है। हाल ही में एक पूर्व नौकरशाह द्वारा ली गई बैठक में आम आदमी कटे-कटे दिखाई दिए। आम आदमी की पार्टी अब खास लोगों की पार्टी बनती जा रही है। आम खेतिहर मजदूर इस पार्टी से दूर होते जा रहे है। आखिरकार केजरीवाल को कौन समझाए। उनकी आंखों पर तो गंधारी की तरह पट्टी बंधी हुई है। वह ही उनके विनाश का कारण बनेगी। इस पार्टी पर एक पुराना गाना जो काफी प्रच्चलित हुआ था और इसे केजरीवाल ने दिल्ली में सता पर आने से पहले खूब गाया कि न मांगू बंगला बाड़ी, ना मांगू घोड़ा गाड़ी और ना मांगू सोना, ना मांगू हीरे मोती, ये मेरे किस काम के.....देते हो तो वोट दो, ये ही हैं बस मेरे काम के। 

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