Friday, April 29, 2011

हुड्डा के साथ-साथ अधिकारी भी ले रहे हैं सता के मजे प्रदेश के अफसरों ने दबाकर कूटी चांदी जनता खा रही है अफसरों के दरबार में धक्के









हुड्डा के साथ-साथ अधिकारी भी ले रहे हैं सता के मजे 
प्रदेश के अफसरों ने दबाकर कूटी चांदी 
जनता खा रही है अफसरों के दरबार में धक्के 
करनाल (अनिल लाम्बा) : जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो भला उस खेत को कौन बचाएगा | यह मुहावरा सदियों से सच का प्रतीक बना हुआ है और यह सच प्रदेश की मौजूदा हुड्डा सरकार पर बिल्कुल स्टिक बैठ रहा है | जनता को सच्चाई बताने से पहले यहाँ यह बताना जरूरी है क़ि एक मुख्यमंत्री वह भी थे जो स्वास्थ्य दिक्कत के चलते भी गाँव क़ी टेल-टेल पर खुद ग्रामीणों से रूबरू होते थे और उनकी समस्याएं हल भी करते थे | हो भी क्यों न , जब प्रदेश का थानेदार गांववालों क़ी सुध लेने खुद गाँव में जाएगा तो जाहिर सी बात है क़ि उसके सिपाही और हवलदार भी खुद-ब-खुद वहां पहुंच जाएंगे | जी हाँ , हम बात कर रहे हैं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला क़ी | जितने साल वह सता में रहे , उतने ही साल उन्होंने सरकार आपके द्वार कार्यक्रम चलाकर उन अधिकारियों को भी उस मिट्टी क़ी टेल पर खड़ा कर दिया , जहां कभी अधिकारी जाना तक पसंद नहीं करते लेकिन क्या करें , मजबूरी का नाम यहाँ शुक्रिया अदा होता था | क्योंकि जब प्रदेश का राजा जनता क़ी सुध लेने उनके गाँव में पहुंचेगा तो जाहिर सी बात  है क़ि अधिकारियों क़ी क्या मजाल क़ि वह अपने ऐ.सी. के ठंडे कमरों में बैठकर मजा लें लेकिन जैसे ही सता ने पलटा खाया तो मुख्यमंत्री के साथ-साथ अधिकारी भी बदल गये | शुरू-शुरू में जब भूपेन्द्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री बने तो अधिकारियों ने कुछ महीने तक जनता के बीच ऐसी छवि बनाई क़ि अधिकारियों क़ी ही नहीं बल्कि सी.एम्. क़ी भी बल्ले-बल्ले होने लगी | खेतों में हरी फसल लहलहाने लगी | चौतरफा कांग्रेस सरकार क़ी वाहवाही से कांग्रेस क़ी राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी हुड्डा क़ी पीठ थपथपाई | पीठ थपते ही मुख्यमंत्री भी एकदम बदल गए | मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने चिर-विरोधी रहे भजनलाल के समर्थकों के घर काफी समय तक भले ही हुड्डा चाय-पानी क़ी पार्टियों में पहुँचने में मशगूल रहे हों लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल नहीं आया कि आखिर जिस जनता ने भारी बहुमत से कांग्रेस को सत्ता सौंपी है , उन्हें नाराज़ करना भारी भी पड़ सकता है | पांच साल तो जैसे-तैसे निकल गये लेकिन इन पांच सालों के दौरान हुड्डा कभी गाँव क़ी टेल तक नहीं पहुंचे | आसमान में हवाई जहाज का शोर जरुर सुनाई दिया लेकिन सड़क रास्ते पर गांववालों क़ी सुध लेते हुए हुड्डा को जरा भी यह ख्याल नहीं आया क़ि आखिर जनता का हाल-चाल पूछ लेना भी कोई कानूनन जुर्म नहीं है | पर जनता तो अब हाथ कटवा बैठी है | अब तो पांच साल के बाद फिर देखेंगे | यह जुमला हुड्डा ने जरुर अपनाया | इसी दौरान प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में भ्रष्टाचार का बवंडर खड़ा हो गया | भ्रष्टाचार के बवंडर ने देश क़ी जनता को इस तरह से हवा में उड़ाया क़ि एक दम से उछली महंगाई ने जनता क़ी रोटी हराम कर दी | यदि कांग्रेस ईमानदार और गरीबों के प्रति सच्ची हितैषी होती तो न तो कलमाड़ी जैसे नेता अन्दर होते और ना ही देश के दूरसंचार मंत्री सलाखों के पीछे | ईमानदारी कायम होती तो देश में महंगाई नहीं होती | अन्ना हजारे जैसे लोगों को आमरण अनशन पर ना उतरना पड़ता | यह सच पूरे देश का है | इसे पूरा देश देख भी चुका है | हरियाणा का सच भी जल्दी उजागर होगा क्योंकि मुख्यमंत्री ने जनता क़ी सुध तो नहीं ली लेकिन उन लोगों क़ी सुध जरुर ली जो किसानों क़ी जमीन हडपना चहाते थे और सरकार ने कोडियों के भाव जमीन खरीद कर उन्हें थमा दी | आज नहीं तो कल प्रदेश क़ी जनता को जब सच का सामना करना पडेगा तो उन्हें जरुर पछतावा होगा क़ि दूसरी बार उनसे यह गलती नहीं होनी चाहिये थी | हुड्डा क़ी सरकार यदि इतनी ईमानदार होती तो जनता अपना समर्थन क्यों कम करतीं ? साठ क़ी बजाय चालीस या पन्तालिस सीटें ही क्यों आती ? क्यों आज़ाद विधायकों का सहारा लेना पड़ा ? क्यों हजकां के पांच विधायकों को पिछले दरवाजे से कांग्रेस में धकेलना पड़ा ? यह सच जनता जानती है लेकिन समय का इन्तजार कर रही है लेकिन जनता के साथ दूसरी दुर्गति यह हो रही है क़ि सरकार में बने राजा और उसके मंत्री तो कानों में रुईं डालकर बैठ गये | उनकी देखा-देखी में चाटुकार अफसर भी ऐ.सी. के बंद कमरों में बैठ गये | आज इन्साफ के लिए जनता को नारेबाजी करनी पडती है | हक क़ी लड़ाई के लिए आमरण अनशन का सहारा लेना पड़ता है | भला हो इस प्रदेश के आई.जी. व़ी. कामराजा का , जिसका  डर पुलिस कर्मियों में अभी तक मौजूद है वरना पांच राज्यों क़ी पुलिस तो कब क़ी जनता को ही चाट चुकी होती | पुलिस गरीब के साथ क्या करती है , यह किसी से छिपा नहीं है | आज एक गरीब को इन्साफ मांगने के लिए या तो धक्के खाने पडते हैं या फिर उसे अदालत क़ी  चौखट तक पहुंचना पड़ता है | अदालत द्वारा पुलिस को दिए निर्देशों से पता चलता है क़ि कितने मामले अदालत क़ी दखलंदाजी के बाद दर्ज हो रहे हैं , फिर भी इन्साफ नहीं मिल रहा | सबसे बड़ी मौज तो आई.ऐ.एस लॉबी ले रही है | यह लॉबी तो चाहती है क़ि सरकार यही बनी रहे और उनकी मौज भी चलती रहे क्योंकि प्रदेश के राजा को तो वही अधिकारी पसंद हैं जो उनकी हाँ में हाँ और ना में गर्दन लूडका देते हैं | काम करने वाले अभी भी खुडडे लाइन लगे हैं | प्रदेश क़ी जनता को इन्साफ कौन देगा और कौन उसकी फरियाद सुनेगा कम से कम तीन-चार साल तो इन्तजार करना ही होगा |

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