Friday, May 13, 2011

अनीता शर्मा

‎~एक थी लड़की~ एक थी लड़की भोली सी, कुछ अल्हड सी शैतान सी | बचपन से निकल जब बड़ी हुई, तो गैर के आँगन में जा खड़ी हुई | वो नादान थी अनजान थी, दुनिया की चमक से हैरान थी | देखी थी अब उसने घुटन, सही थी उसने दुखो की चुभन | हर दिन सहती थी दुःख अनेक, दूर थी जैसे खुशियाँ हर एक | जिसको यह जीवन सौपा था , उसने ही दिया उसे धोखा था | आया एक समय ऐसा भी, खुला आसमान था सामने उसके भी | अपने पंख फेलाए उड़ चली वो , दूर गगन में खोयी खोयी सी | अंजानो में जैसे उसे मिला , खुशियाओं से भरा एक सिला | चहक उठी वोह लहक उठी, झूम झूम गा नाच उठी | जीवन में आती खुशियों की लहर, चहक उठी वो हर पहर..... अनजान ने दी उसके द्वार पर दस्तक, वो समझी कौन होगा इस वक़्त | हर दुःख के बाद सुख होता है , रात के बाद दिन होता है | उड़ चली वो साथ उसके , कुछ बंधन अपने तोडके | क्या मिलेंगी खुशियाँ उसे , क्या चंदा तारे झूमेंगे पास उसके | एक अनभूज पहेली...... ना जाने उसकी सहेली | कैसे होगी अब वो???? झूमती नाचती गाती या अपने आँचल में आंसुओ को भरती खुद से डरती...... जो लड़की थी भोली सी , कुछ अल्हड सी शैतान सी......... ~~ अनीता शर्मा ~~

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