अनंत कुमार,नागरिक उड्डयन मंत्री और नीरा राडिया की एक गुप्त फाइल
नीरा राडिया तब कुछ और ज्यादा जवान रही होगी। अब भी देखने में वे अच्छी ही लगती है, लेकिन 1994 में जब भारतीय जनता पार्टी के कर्नाटक के सबसे ताकतवर नेताओं में से एक अनंत कुमार से उनकी जान पहचान हुई थी, तो देखते ही देखते निजी और व्यवसायिक अंतरंगता में बदल गई। कांग्रेस के पास उचित ही बहाना है कि नीरा राडिया और राजा के मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर हमला करने के पहले वे अनंत कुमार से सवाल कर लें। नीरा शर्मा से नीरा राडिया बनी यह महिला जब भारत आई थी तो सबसे पहले सहारा समूह में संपर्क अधिकारी यानी वेतन भोगी दलाल की नौकरी उन्हें मिली थी। साथ ही साथ वे सिंगापुर एयर लाइन, ब्रिटिश एयर लाइन और केएलएम के साथ भी टाका भिड़ाए हुई थी। पूतना के पांव पालने में दिख रहे थे। नागरिक उड्डयन मंत्री के तौर पर अनंत कुमार से उनकी अंतरंगता ऐसी थी कि मंत्रालय की इमारत राजीव गांधी भवन में बगैर रोक टोक के उनका आना-जाना था। इसी अंतरंगता का सहारा ले कर नीरा राडिया ने पूरी फाइल तैयार करवा ली थी, जिसमें सिर्फ एक लाख रुपए की लागत से एक पूरी एयर लाइन चलाने का लाइसेंस उन्हें मिल रहा था। इसके अलावा अनंत कुमार चूंकि पर्यटन मंत्री भी थे इसलिए भारतीय पर्यटन विकास निगम के कई शानदार होटल बिकवाने में भी नीरा राडिया ने उतनी ही शानदार भूमिका अदा की। विमान सेवा चलाने के लिए नीरा राडिया के पास एक लाख रुपए की पूंजी थी। उन्होंने विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड यानी एफआईपीबी में विमान सेवा स्थापित करने के लिए आवेदन किया और एक महीने के भीतर उन्हें अनुमति मिल गई। इतने समय में तो लोगों को राशन कार्ड भी नहीं मिलता। मगर फिर सब लोग नीरा राडिया नहीं होते। चूंकि एफआईपीबी का काम विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देना था इसलिए उस समय के वाणिज्य मंत्री मुरासोली मारन ने भी इसके लिए फौरन अनुमति दे दी। उन्होंने यह भी नहीं देखा कि नियम क्या कहते हैं और ये आंटी जी है कौन? थोड़ा आगे बढ़े तो मुरासोली मारन उन दयानिधि मारन के पिता थे, जिन्हें बाहर रख कर ए राजा को मंत्री बनाने के लिए नीरा राडिया ने जो-जो कर्तव्य किए और जहां-जहां वीरों और बरखाओं का इस्तेमाल किया यह आप टेलीफोन टेप से जान चुके हैं। नीरा राडिया को निवेश की अनुमति मिल गई। जब एफआईपीबी से कागज मिला तो विमान सेवा का नाम क्राउन एक्सप्रेस रखा गया और इसकी ओर से एयरक्राफ्ट एक्वीजीशन कमेटी यानी एएसी को आवेदन किया गया। आवेदन में कहा गया था कि शुरू में छह बड़े विमान ला कर उन्हें जेट और सहारा की तरह विमान सेवा शुरू करने की अनुमति दी जाए। याद किया जाना चाहिए कि क्राउन एक्सप्रेस के पास पूंजी एक लाख रुपए ही थी, जितने में एक सेकेंड हैंड खटारा कार भी नहीं आती। एएसी के निदेशक उस समय सुनील अरोड़ा थे जो इंडियन एयरलाइंस के प्रबंध निदेशक और नागरिक उड्डयन मंत्रालय में संयुक्त सचिव भी थे। इन्हीं सुनील अरोड़ा को बाद में एयर इंडिया का प्रबंध निदेशक बनाया गया और अगर आपने गौर से टेलीफोन टेप सुने हों तो बार-बार सुनील अरोड़ा एयर इंडिया के घाटे के लिए मंत्री प्रफुल्ल पटेल को जिम्मेदार ठहराते हैं और नीरा राडिया उनसे कहती हैं कि वे प्रधानमंत्री से सेटिंग कर रही हैं और जल्दी ही प्रफुल्ल पटेल बीड़ी बेचते नजर आएंगे। मगर यह बाद की बात है। उस समय तो सुनील अरोड़ा ने अनंत कुमार के निर्देश पर राडिया की हास्यास्पद फाइल को रद्दी की टोकरी में डालने की बजाय सिर्फ कुछ मासूम से स्पष्टीकरण मांगे। बाद में अरोड़ा ने कहा कि उदारीकरण का दौर था और ऐसे में प्रतियोगिता होती हैं और कई कंपनियां आती हैं, मगर उनकी पात्रता पर मौजूद नियमों और निर्देशों के हिसाब से विचार किया जाता है। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना था कि राडिया की अर्जी में काफी कुछ कमजोरियां थी। सबसे बड़ी कमजोरी तो यही थी कि जब कंपनी के पास जमा पूंजी एक लाख रुपए की हैं तो जहाज कहां से खरीदेगी क्योंकि कुल परियोजना 133 करोड़ की बन रही थी। नीरा ने अनंत से शिकायत की। अनंत ने अफसरों को बुलाया। नीरा ने कहा कि वे नियमानुसार जरूरी तीस करोड़ रुपए की न्यूनतम शेयर राशि की बजाय 111 करोड़ रुपए इस कंपनी में डालने वाली है और 30 करोड़ का पैमाना तो वे उसी दिन पूरा कर देंगी जिस दिन उन्हें अनुमति मिल जाएगी। बाकी पैसा वे विदेशी संस्थानों से ले कर आएंगी। दूसरे शब्दों में अनुमति के लिए तीस करोड़ रुपए की पूंजी चाहिए थी मगर नीरा पूंजी के लिए अनुमति मांग रही थी। नीरा राडिया ने यह भी कहा था कि जब तक एएसी का अनापत्य प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता, तब तक पंजी तीस करोड़ करने का कोई मतलब नहीं होगा। उन्होंने तो यहां तक कहा था कि अनुमति मिल जाने के बाद भी मंत्रालय इसे वापस ले सकता है अगर उसे लगता है कि कंपनी के पास पर्याप्त पूंजी नहीं है। असल में नीरा राडिया भारत सरकार को भारत सरकार का कानून और कायदा सीखा रही थी। नीरा 6 बोईंग 737 विमान ला कर अपनी विमान सेवा शुरू करना चाहती थी और इसके लिए 500 करोड़ रुपए की जरूरत थी, मगर नीरा राडिया ने इस आपत्ति का जवाब यह कह कर दिया कि वे बहुत सारी विमान सेवा कंपनियों के लिए दलाली करती रही हैं और जैसे दूसरों के लाती थी, अपने लिए भी जहाज किराए पर ले आएंगी। मंत्रालय के अधिकारियों ने खुद मंत्री अनंत कुमार को समझाया और नियमों की किताब दिखाई जिसके अनुसार जब तक पूंजी के स्रोत का पता नहीं चलता और सरकार उससे संतुष्ट नहीं होती, तब तक विमान सेवा शुरू करने की अनुमति देने का कोई रिवाज नहीं है। फिर भी अनंत कुमार चाहते थे कि उनकी नीरा को लाइसेंस जारी कर दिया जाए। कुछ भक्त अधिकारी इसके लिए तैयार भी थे, मगर नागरिक उड्डयन के महानिदेशक कार्यालय ने इसकी अनुमति नहीं दी, वरना तो नीरा को उसी दिन लाइसेंस मिल जाता और हो सकता है कि आज क्राउन एक्सप्रेस के नाम से कोई बड़ी विमान सेवा चल रही होती। दलाली और दोस्ती में बड़ी ताकत होती है। एएसी के कुछ सदस्यों का मानना था, और यह मंत्रालय के रिकॉर्ड में अब तक दर्ज हैं कि अगर पैसे का स्रोत और शेयर धारकों के नाम पते नहीं बताए जाते तो पिछले दरवाजे से विदेशी विमान सेवाएं भारत के आकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा सकती हैं, और यह देश की सुरक्षा के हिसाब से भी ठीक नहीं होगा और भारत के कारोबारी हितों में भी नहीं होगा। अनंत कुमार के बहुत सारे प्रेम के बावजूद नीरा राडिया का सपना टूट गया और पता नहीं प्रफुल्ल पटेल किस बात का इंतजार कर रहे हैं और पुरानी फाइलों को निकाल कर अनंत कुमार को जितना कर सकते हैं, उतना बेनकाब क्यों नहीं करते?नीरा का एक काल तयकर्ता था अरबों की डील
नीरा राडिया के संबंध देश के ताकतवार राजनेताओं, मंत्रियों और मीडिया के दिग्गजों तक से हैं। वे इस संबंध का इस्तेमाल अपने क्लाइंट्स को फायदा पहुंचाने के लिए करती हैं। नीरा की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके कॉल की एक घंटी मंत्रियों को सीट से उठा देने के लिए काफी है। उसके कॉल तय करते थे कि किस घराने को कौन सा ठेका मिलेगा। कॉरपोरेट्स धराने, मीडिया और राजनेता के इस खतरनाक गठजोड़ ने पूरे देश को चौंका दिया है। आखिर नीरा है क्या बला? जब दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने इसी पड़ताल की तो उसकी जिंदगी के कई राज सामने आए।धुंधराले बालों वाली नीरा मूलत: ब्रिटिश नागरिक हैं। लेकिन अपनी बिजनेसमेन पति जनक राडिया से तलाक के बाद उन्होंने लंदन से भारत का रुख किया। भारत में उनके तीन बेटे उनके साथ रहती हैं। 2003 में उनके बिजनेस पार्टनर धीरज सिंह को उनके 18 साल के बेटे के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है।नीरा का नाम दुनिया के सामने पहली बार 2008-09 में आया जब आयकर विभाग ने उनके कुछ फोन कॉल को टैप किया। इस फोन कॉल से पता चला कि कैसे नीरा अपने क्लाइंट को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार में दखल करती हैं। नीरा राडिया चार कंपनियों की मालकिन है। वे जिस-जिस कंपनी की मालिक हैं, उनके टेलीफोन टेप किए गए थे। आयकर निदेशालय के मुताबिक टेलीफोन टैप से जो बाते सामने आईं हैं उसमें अपने कॉरपोरेट क्लाइंट की व्यवसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के कई विभाग के निर्णयों को बदला गया और कई मामलों में तो नीतिगत फैसलों को भी बदलवाकर लाभ पहुंचाया गया। नीरा ने पूर्व दूरसंचार ए.राजा से कई ऐसे फैसले बदलवा दिए जिससे उसके क्लाइंट का लाभ पहुंच सके। टैप से साबित हुआ है कि राडिया की पहुंच सीधी ए राजा तक है। वह सीधे राजा को ही कॉल करती थी। बीच में कभी भी कोई सचिव या पीए नहीं होता था। कुछेक दस्तावेज तो यह भी बताते हैं कि नीरा के संबंध झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से भी थे। नीरा ने अपने क्लाइंट को खान दिलाने के लिए उन्हें 180 करोड़ रूपए की रिश्वत दी थी। सीबीआई की कागजों में कहा गया है कि झारखंड में लौहअयस्क की खानों के बदले नीरा ने कोड़ा और दो सहयोगियों को भारी पैसा दिया था। नीरा का संबंध सिर्फ राजनीतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि मीडिया में भी रहा। नीरा ने कई प्रभावशाली मीडिया हस्तियों से संपर्क साधती थीं और अपने लिए प्रयोग करती थीं। देश के दो बड़े पत्रकार इस सिर्फ शक के घेरे में हैं। एक देश की ख्यात महिला पत्रकार हैं जो एक न्यूज चैनल में काम करती हैं तो दूसरे पत्रकार एक अंग्रेजी अखबार में हैं। हालांकि, दोनों ने नीरा से किसी भी प्रकार के ऐसे संबंध से इंकार किया है जिसका फायदा वह उनसे उठाती थीं।नीरा को शिकंजे में लेना कोई आसान काम नहीं है। उसकी कंपनियां टाटा ग्रुप के साथ-साथ यूनिटेक, मुकेश अंबानी की रिलांयस से लेकर देश के कई ख्यात मीडिया संस्थानों के लिए भी काम करती हैं। पता चला कि अपने कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए नीरा राडिया ने संचार मंत्री ए राजा से कह कर कई बड़े और महंगे सौदे अपने ग्राहकों के हक में बदलवाए। सिर्फ चार महीने में हजारों करोड़ के सौदे हो गए। नीरा राडिया ने नए टेलीफोन ऑपरेटरों को सिखाया कि विदेशी निवेश कैसे छिपाया जा सकता है। नीरा राडिया के ए राजा के साथ संदिग्ध होने की हद तक अंतरंग संबंध है। राजा और राडिया सीधे मोबाइल पर प्रेमालाप करते है। सीबीआई के अधिकारियों के अनुसार जब मनमोहन सिंह अपना दूसरा मंत्रिमंडल बना रहे थे तो गुप्तचर रिपोर्ट दी गई थी कि ए राजा के बहुत सारे आर्थिक स्वार्थ हैं इसलिए उन्हें कोई जिम्मेदार विभाग नहीं दिया जाए। मगर राजनैतिक मजबूरियों और नीरा राडिया के ताकतवर कॉरपोरेट ग्राहकों की मदद से आखिरकार राजा संचार मंत्री बन ही गए। सबूत सामने है। कैबिनेट के शपथ ग्रहण से ग्यारह दिन पहले नीरा राडिया के फोन टेप दस्तावेजों के अनुसार कॉरपोरेट लॉबी की पहल पर नीरा राजा को संचार मंत्री बनवाने में लगी हुई थी। कई बड़े पत्रकारों के नाम भी (हिन्दुस्तान टाइम्स के पूर्व सम्पादक वीर संघवी, एनडीटीवी की प्रबंध सम्पादक बरखा दत्त का नाम नीरा राडिया के साथ और उसके लाबिंग में तथाकथित मदद को लेकर चर्चा में है , और भी सुनामधन्य खबरनवीसों के नाम हैं ) इन दस्तावेजों में है। टाटा इंडिकॉम तो चलाता ही है और नई मोबाइल कंपनी एयरसेल में मैक्सिस कम्युनिकेशन और अपोलो के जरिए टाटा ही मालिक है। रतन टाटा वोल्टास के जरिए करुणानिधि के पत्नी के चार्टर्ड अकाउंटेंट के संपर्क में भी थी। एयरटेल के सुनील मित्तल लगातार कोशिश कर रहे थे कि राजा नहीं, दयानिधि मारन दोबारा संचार मंत्री बने। इस काम के लिए भी मित्तल ने राडिया से संपर्क किया। आयकर विभाग के गुप्त दस्तावेज बताते है कि स्वान टेलीकॉम, एयरसेल, यूनीटेक वायरलैस और डाटा कॉम को लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के लाभ भी मिले। राडिया ने अपनी सभी कंपनियों में रिटायर्ड अफसरों को रखा हुआ हैं और वे बहुत काम आते है। कहा जाता है कि झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा टाटा समूह से एक सौ अस्सी करोड़ रुपए मांग रहे थे मगर राडिया ने राज्यपाल के जरिए मुफ्त में काम करवा दिया। जाहिर है कि यह सेवा निशुल्क नहीं हुई होगी। नीरा राडिया की कंपनिया टाटा के अलावा यूनीटेक, रिलायंस, स्टार समूह जैसे बड़े ब्रांड के लिए जनसंपर्क यानी दलाली कर रही है। इस दलाली में भी खूब खेल हो रहे हैं। स्वान को पंद्रह सौ सैतीस करोड़ रुपए में लाइसेंस मिला और कुछ ही दिन बाद इसका सिर्फ चौवालीस प्रतिशत हिस्सा संयुक्त अरब अमीरात के ईटीसैलेट को बयालीस सौ करोड़ में बेच दिया। यूनीटेक वायरलैस को स्पेक्ट्र लाइसेंस सोलह सौ इकसठ करोड़ में मिला और उन्होंने नार्वे की टेलनोर को साठ प्रतिशत शेयर इकसठ सौ बीस करोड़ रुपए में बेच दिया। ईमानदारी की कसम खाने वाले टाटा टेली सर्विसेज ने भी सिर्फ छब्बीस फीसदी शेयर जापान के डोकोमो को तेरह हजार दो सौ तीस करोड़ रुपए में बेचे। स्वान कंपनी ने तो और भी कमाल किया। चार महीने पहले चेन्नई की जेनेक्स एग्जिम वेंचर को तीन सौ अस्सी करोड़ रुपए के शेयर एक लाख रुपए में दे दिए। घपला साफ दिख रहा है। लेकिन इस घपले को पकड़ने वाले सीबीआई के मिलाप जैन का तबादला हो चुका है और आयकर विभाग अब कह रहा है कि उसने कभी नीरा राडिया का फोन टेप करने के आदेश दिए ही नहीं थे। नीरा राडिया के ग्र्राहकों में पीसीएस हैं, टाटा स्टील है, टाटा मोटर्स है, टाटा टेली सर्विसेज है, इंडियन होटल्स है, ट्रेंट इंटरनेशनल है, टाइटन है, सन माइक्रो सिस्टम है, आईटीसी है, जीएमआर है, स्टार है, सीमंस है, कोटक महिंद्रा है, चैनल वी है, ईबे है, अरेवा पावर्स है, रेमंड्स है और भारतीय उद्योग महासंघ भी है। आप समझ सकते हैं कि नीरा जी कितनी प्रतिभाशाली है। नीरा की कंपनियों की बोर्ड में मध्य प्रदेश काडर के आईएएस अफसर और टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरटी के अध्यक्ष रहे प्रदीप बैजल है, बड़े सचिव पदो पर रहे सीएम वासुदेव हैं जो महाराष्ट्र के मुख्य सचिव थे, एस के नरुल्ला है जिन्हें और बड़ा दलाल माना जाता है और सीईओ के पद पर राजीव मोहन है जो दुर्भाग्य से नीरा वाडिया से पहले जेल जाएंगे।
नीरा राडिया के संबंध देश के ताकतवार राजनेताओं, मंत्रियों और मीडिया के दिग्गजों तक से हैं। वे इस संबंध का इस्तेमाल अपने क्लाइंट्स को फायदा पहुंचाने के लिए करती हैं। नीरा की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसके कॉल की एक घंटी मंत्रियों को सीट से उठा देने के लिए काफी है। उसके कॉल तय करते थे कि किस घराने को कौन सा ठेका मिलेगा। कॉरपोरेट्स धराने, मीडिया और राजनेता के इस खतरनाक गठजोड़ ने पूरे देश को चौंका दिया है। आखिर नीरा है क्या बला? जब दैनिक भास्कर डॉट कॉम ने इसी पड़ताल की तो उसकी जिंदगी के कई राज सामने आए।धुंधराले बालों वाली नीरा मूलत: ब्रिटिश नागरिक हैं। लेकिन अपनी बिजनेसमेन पति जनक राडिया से तलाक के बाद उन्होंने लंदन से भारत का रुख किया। भारत में उनके तीन बेटे उनके साथ रहती हैं। 2003 में उनके बिजनेस पार्टनर धीरज सिंह को उनके 18 साल के बेटे के अपहरण के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है।नीरा का नाम दुनिया के सामने पहली बार 2008-09 में आया जब आयकर विभाग ने उनके कुछ फोन कॉल को टैप किया। इस फोन कॉल से पता चला कि कैसे नीरा अपने क्लाइंट को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार में दखल करती हैं। नीरा राडिया चार कंपनियों की मालकिन है। वे जिस-जिस कंपनी की मालिक हैं, उनके टेलीफोन टेप किए गए थे। आयकर निदेशालय के मुताबिक टेलीफोन टैप से जो बाते सामने आईं हैं उसमें अपने कॉरपोरेट क्लाइंट की व्यवसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार के कई विभाग के निर्णयों को बदला गया और कई मामलों में तो नीतिगत फैसलों को भी बदलवाकर लाभ पहुंचाया गया। नीरा ने पूर्व दूरसंचार ए.राजा से कई ऐसे फैसले बदलवा दिए जिससे उसके क्लाइंट का लाभ पहुंच सके। टैप से साबित हुआ है कि राडिया की पहुंच सीधी ए राजा तक है। वह सीधे राजा को ही कॉल करती थी। बीच में कभी भी कोई सचिव या पीए नहीं होता था। कुछेक दस्तावेज तो यह भी बताते हैं कि नीरा के संबंध झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से भी थे। नीरा ने अपने क्लाइंट को खान दिलाने के लिए उन्हें 180 करोड़ रूपए की रिश्वत दी थी। सीबीआई की कागजों में कहा गया है कि झारखंड में लौहअयस्क की खानों के बदले नीरा ने कोड़ा और दो सहयोगियों को भारी पैसा दिया था। नीरा का संबंध सिर्फ राजनीतिक गलियारों में ही नहीं बल्कि मीडिया में भी रहा। नीरा ने कई प्रभावशाली मीडिया हस्तियों से संपर्क साधती थीं और अपने लिए प्रयोग करती थीं। देश के दो बड़े पत्रकार इस सिर्फ शक के घेरे में हैं। एक देश की ख्यात महिला पत्रकार हैं जो एक न्यूज चैनल में काम करती हैं तो दूसरे पत्रकार एक अंग्रेजी अखबार में हैं। हालांकि, दोनों ने नीरा से किसी भी प्रकार के ऐसे संबंध से इंकार किया है जिसका फायदा वह उनसे उठाती थीं।नीरा को शिकंजे में लेना कोई आसान काम नहीं है। उसकी कंपनियां टाटा ग्रुप के साथ-साथ यूनिटेक, मुकेश अंबानी की रिलांयस से लेकर देश के कई ख्यात मीडिया संस्थानों के लिए भी काम करती हैं। पता चला कि अपने कॉरपोरेट ग्राहकों के लिए नीरा राडिया ने संचार मंत्री ए राजा से कह कर कई बड़े और महंगे सौदे अपने ग्राहकों के हक में बदलवाए। सिर्फ चार महीने में हजारों करोड़ के सौदे हो गए। नीरा राडिया ने नए टेलीफोन ऑपरेटरों को सिखाया कि विदेशी निवेश कैसे छिपाया जा सकता है। नीरा राडिया के ए राजा के साथ संदिग्ध होने की हद तक अंतरंग संबंध है। राजा और राडिया सीधे मोबाइल पर प्रेमालाप करते है। सीबीआई के अधिकारियों के अनुसार जब मनमोहन सिंह अपना दूसरा मंत्रिमंडल बना रहे थे तो गुप्तचर रिपोर्ट दी गई थी कि ए राजा के बहुत सारे आर्थिक स्वार्थ हैं इसलिए उन्हें कोई जिम्मेदार विभाग नहीं दिया जाए। मगर राजनैतिक मजबूरियों और नीरा राडिया के ताकतवर कॉरपोरेट ग्राहकों की मदद से आखिरकार राजा संचार मंत्री बन ही गए। सबूत सामने है। कैबिनेट के शपथ ग्रहण से ग्यारह दिन पहले नीरा राडिया के फोन टेप दस्तावेजों के अनुसार कॉरपोरेट लॉबी की पहल पर नीरा राजा को संचार मंत्री बनवाने में लगी हुई थी। कई बड़े पत्रकारों के नाम भी (हिन्दुस्तान टाइम्स के पूर्व सम्पादक वीर संघवी, एनडीटीवी की प्रबंध सम्पादक बरखा दत्त का नाम नीरा राडिया के साथ और उसके लाबिंग में तथाकथित मदद को लेकर चर्चा में है , और भी सुनामधन्य खबरनवीसों के नाम हैं ) इन दस्तावेजों में है। टाटा इंडिकॉम तो चलाता ही है और नई मोबाइल कंपनी एयरसेल में मैक्सिस कम्युनिकेशन और अपोलो के जरिए टाटा ही मालिक है। रतन टाटा वोल्टास के जरिए करुणानिधि के पत्नी के चार्टर्ड अकाउंटेंट के संपर्क में भी थी। एयरटेल के सुनील मित्तल लगातार कोशिश कर रहे थे कि राजा नहीं, दयानिधि मारन दोबारा संचार मंत्री बने। इस काम के लिए भी मित्तल ने राडिया से संपर्क किया। आयकर विभाग के गुप्त दस्तावेज बताते है कि स्वान टेलीकॉम, एयरसेल, यूनीटेक वायरलैस और डाटा कॉम को लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के लाभ भी मिले। राडिया ने अपनी सभी कंपनियों में रिटायर्ड अफसरों को रखा हुआ हैं और वे बहुत काम आते है। कहा जाता है कि झारखंड के मुख्यमंत्री मधु कोडा टाटा समूह से एक सौ अस्सी करोड़ रुपए मांग रहे थे मगर राडिया ने राज्यपाल के जरिए मुफ्त में काम करवा दिया। जाहिर है कि यह सेवा निशुल्क नहीं हुई होगी। नीरा राडिया की कंपनिया टाटा के अलावा यूनीटेक, रिलायंस, स्टार समूह जैसे बड़े ब्रांड के लिए जनसंपर्क यानी दलाली कर रही है। इस दलाली में भी खूब खेल हो रहे हैं। स्वान को पंद्रह सौ सैतीस करोड़ रुपए में लाइसेंस मिला और कुछ ही दिन बाद इसका सिर्फ चौवालीस प्रतिशत हिस्सा संयुक्त अरब अमीरात के ईटीसैलेट को बयालीस सौ करोड़ में बेच दिया। यूनीटेक वायरलैस को स्पेक्ट्र लाइसेंस सोलह सौ इकसठ करोड़ में मिला और उन्होंने नार्वे की टेलनोर को साठ प्रतिशत शेयर इकसठ सौ बीस करोड़ रुपए में बेच दिया। ईमानदारी की कसम खाने वाले टाटा टेली सर्विसेज ने भी सिर्फ छब्बीस फीसदी शेयर जापान के डोकोमो को तेरह हजार दो सौ तीस करोड़ रुपए में बेचे। स्वान कंपनी ने तो और भी कमाल किया। चार महीने पहले चेन्नई की जेनेक्स एग्जिम वेंचर को तीन सौ अस्सी करोड़ रुपए के शेयर एक लाख रुपए में दे दिए। घपला साफ दिख रहा है। लेकिन इस घपले को पकड़ने वाले सीबीआई के मिलाप जैन का तबादला हो चुका है और आयकर विभाग अब कह रहा है कि उसने कभी नीरा राडिया का फोन टेप करने के आदेश दिए ही नहीं थे। नीरा राडिया के ग्र्राहकों में पीसीएस हैं, टाटा स्टील है, टाटा मोटर्स है, टाटा टेली सर्विसेज है, इंडियन होटल्स है, ट्रेंट इंटरनेशनल है, टाइटन है, सन माइक्रो सिस्टम है, आईटीसी है, जीएमआर है, स्टार है, सीमंस है, कोटक महिंद्रा है, चैनल वी है, ईबे है, अरेवा पावर्स है, रेमंड्स है और भारतीय उद्योग महासंघ भी है। आप समझ सकते हैं कि नीरा जी कितनी प्रतिभाशाली है। नीरा की कंपनियों की बोर्ड में मध्य प्रदेश काडर के आईएएस अफसर और टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरटी के अध्यक्ष रहे प्रदीप बैजल है, बड़े सचिव पदो पर रहे सीएम वासुदेव हैं जो महाराष्ट्र के मुख्य सचिव थे, एस के नरुल्ला है जिन्हें और बड़ा दलाल माना जाता है और सीईओ के पद पर राजीव मोहन है जो दुर्भाग्य से नीरा वाडिया से पहले जेल जाएंगे।
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