नयी दिल्ली,(इंडिया विसन) : राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे के आगे भाजपा आलाकमान को एक बार फिर झुकना पड़ा है। इसके साथ ही राजे समर्थक विधायकों के इस्तीफों की पेशकश से उपजा पार्टी का संकट फिलहाल टल गया है, लेकिन स्थायी समाधान के रूप में इसी माह होने वाली भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में राजे को आगामी विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया जा सकता है।
ध्यान रहे कि राजनाथ सिंह के अध्यक्षकाल में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की नेता रहने की जिद पर पार्टी आलाकमान को झुकानेवाली राजे ने हाल ही में गुलाब चंद कटारिया की प्रस्तावित यात्रा के विरोध में पार्टी ही छोड़ देने की धमकी दे कर सनसनी फैला दी थी। राजे ने तो धमकी ही दी, लेकिन उनके समर्थक 56 भाजपा विधायकों ने बाकायदा उन्हें अपने इस्तीफे सौंप दिये थे।
200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में भाजपा के कुल 79 विधायक हैं। इनमें से 56 विधायकों द्वारा राजे के समर्थन में इस्तीफों से भाजपा आलाकमान की हाथ-पांव फूल गये, क्योंकि राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें भाजपा सत्ता में वापसी के प्रति आश्वस्त है। ऐसे वक्त राजे की बगावत का अर्थ भाजपा के लिए कुल्हाड़ी पर कूद पडऩे सरीखा आत्मघाती ही होता। सूत्रों के मुताबिक राजे ने भाजपा छोड़ कर क्षेत्रीय दल बनाने की धमकी साफ-साफ शब्दों में दे दी है।
इसलिए आलाकमान ने उन्हें मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किये। उन्हें सोमवार को दिल्ली आने को कहा गया, पर अपने रवैये के लिए मशहूर राजे ने खुद आने के बजाय किरण माहेश्वरी को भेजा, जो भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव हैं। किरण माहेश्वरी ने यहां भाजपा के प्रमुख नेताओं से मुलाकात में साफ कर दिया कि मामला सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते गुलाब चंद कटारिया द्वारा अपनी यात्रा रद्द करने से ही नहीं सुलझेगा, राजे को राजस्थान में भाजपा का निर्विवाद नेता और उसी नाते मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित किया जाना चाहिए। लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली समेत जितने भी वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने किरण माहेश्वरी मिलीं, सभी ने उन्हें यही समझाने की कोशिश की कि राजे के मुख्यमंत्री पद का दावेदार होने में किसी संदेह की गुंजाइश ही नहीं है। फिर भी अगर वह चाहती हैं कि इस बाबत चुनाव से पूर्व ही सार्वजनिक घोषणा कर दी जाये तो इस पर 24-25 मई को होने जा रही भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो सकती है।
हालांकि कटारिया ने सफाई दी है कि वह तो राजस्थान की कांग्रेस सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए यात्रा निकालना चाह रहे थे , जिसे कुछ लोगों ने प्रतिष्ठा का प्रश्र बना लिया, लेकिन सच यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अरसे से भाजपा संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहा है। इसी मकसद से राजे के विरोध के बावजूद अरुण चतुर्वेदी को राजस्थान प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था और अब यात्रा के जरिये कटारिया को आगे करने की योजना थी, जिसे फिलहाल तो पंचर कर दिया गया है, लेकिन वर्चस्व की जंग आसानी से थम जायेगी, ऐसा लगता नहीं है।
ध्यान रहे कि राजनाथ सिंह के अध्यक्षकाल में राजस्थान विधानसभा में विपक्ष की नेता रहने की जिद पर पार्टी आलाकमान को झुकानेवाली राजे ने हाल ही में गुलाब चंद कटारिया की प्रस्तावित यात्रा के विरोध में पार्टी ही छोड़ देने की धमकी दे कर सनसनी फैला दी थी। राजे ने तो धमकी ही दी, लेकिन उनके समर्थक 56 भाजपा विधायकों ने बाकायदा उन्हें अपने इस्तीफे सौंप दिये थे।
200 सदस्यीय राजस्थान विधानसभा में भाजपा के कुल 79 विधायक हैं। इनमें से 56 विधायकों द्वारा राजे के समर्थन में इस्तीफों से भाजपा आलाकमान की हाथ-पांव फूल गये, क्योंकि राजस्थान में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, जिनमें भाजपा सत्ता में वापसी के प्रति आश्वस्त है। ऐसे वक्त राजे की बगावत का अर्थ भाजपा के लिए कुल्हाड़ी पर कूद पडऩे सरीखा आत्मघाती ही होता। सूत्रों के मुताबिक राजे ने भाजपा छोड़ कर क्षेत्रीय दल बनाने की धमकी साफ-साफ शब्दों में दे दी है।
इसलिए आलाकमान ने उन्हें मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किये। उन्हें सोमवार को दिल्ली आने को कहा गया, पर अपने रवैये के लिए मशहूर राजे ने खुद आने के बजाय किरण माहेश्वरी को भेजा, जो भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव हैं। किरण माहेश्वरी ने यहां भाजपा के प्रमुख नेताओं से मुलाकात में साफ कर दिया कि मामला सिर्फ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चहेते गुलाब चंद कटारिया द्वारा अपनी यात्रा रद्द करने से ही नहीं सुलझेगा, राजे को राजस्थान में भाजपा का निर्विवाद नेता और उसी नाते मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित किया जाना चाहिए। लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और अरुण जेटली समेत जितने भी वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने किरण माहेश्वरी मिलीं, सभी ने उन्हें यही समझाने की कोशिश की कि राजे के मुख्यमंत्री पद का दावेदार होने में किसी संदेह की गुंजाइश ही नहीं है। फिर भी अगर वह चाहती हैं कि इस बाबत चुनाव से पूर्व ही सार्वजनिक घोषणा कर दी जाये तो इस पर 24-25 मई को होने जा रही भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा हो सकती है।
हालांकि कटारिया ने सफाई दी है कि वह तो राजस्थान की कांग्रेस सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए यात्रा निकालना चाह रहे थे , जिसे कुछ लोगों ने प्रतिष्ठा का प्रश्र बना लिया, लेकिन सच यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अरसे से भाजपा संगठन पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाह रहा है। इसी मकसद से राजे के विरोध के बावजूद अरुण चतुर्वेदी को राजस्थान प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था और अब यात्रा के जरिये कटारिया को आगे करने की योजना थी, जिसे फिलहाल तो पंचर कर दिया गया है, लेकिन वर्चस्व की जंग आसानी से थम जायेगी, ऐसा लगता नहीं है।

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