Sunday, January 11, 2015

‘नेशनल ट्रस्ट’ में करोड़ों का घोटाला! सरकार पर लगा बड़ा प्रश्न चिन्ह? ‘भ्रष्टाचार उजागर करने वाले अधिकारी ए. के. लाल को पद से हटाया गया’

करनाल, 11 जनवरी (अनिल लाम्बा ) नई केंद्र सरकार के सुशासन और पारदर्शिता के तमाम दावे के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हीं का मंत्रालय उन्हें अंधेरे में रखकर भ्रष्टाचार अनियमितताओं की तमाम सीमाएं तोड़कर अपने ही प्रधानमंत्री को शर्मिंदा करने पर अमादा है। यह मामला सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अधीन आने वाले ‘नेशनल ट्रस्ट’ से है। यह ट्रस्ट विकलांग व्यक्तियों को आर्थिक सहायता मुहैय्या कराता है। लेकिन पिछले 6-7 वर्षों के दौरान नेशनल ट्रस्ट का पैसा विकलांगों की मदद की जगह इस ट्रस्ट को चलाने वाले लोगों ने मनमाने ढ़ग से डकार लिए। इसमें कई एनजीओ भी शामिल हैं। 6-7 सालों से चल रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के गड़बड़झाले को जब अप्रैल 2013 में ट्रस्ट के नवनियुक्त संयुक्त सचिव और मुख्य कार्यपालक अधिकारी ए. के. लाल (भारतीय रेल सेवा के अधिकारी) ने जांच करने और उजागर करने की कोशिश की तो उन्हें 5 दिसंबर 2014 को उनके पद से ही हटा दिया गया। जरा विस्तार से इस पूरे घोटाले के बारे में आपको बताते हैं। 1999 में नेशनल ट्रस्ट की स्थापना हुई। इस ट्रस्ट का मुख्यकाम शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से विकलांग लोगों के कल्याण के लिए काम करना है। लेकिन सन 2006 से ‘नेशनल ट्रस्ट’ में भ्रष्टाचार ने सारी सीमाएं तोड़कर रख दी। ए. के लाल ने बताया कि इस पूरे घोटाले की सूत्रधार इस ट्रस्ट की चेयरपर्सन (जो अब नहीं है) पूनम नटराजन रही हैं। जिसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कई साल तक घोटाले को अंजाम तक पहुंचाती रही। इस ट्रस्ट को 22 सदस्य मिलकर चलाते हैं। जिसमें 6 सदस्य एनजीओ से चुने जाते हैं। बाकी के सदस्य सरकारी अधिकारी होते हैं। इस ट्रस्ट के संयुक्त सचिव रहे ए. के. लाल ने बताया कि बोर्ड की होने वाली बैठकों में एनजीओं के सदस्य बड़ी बदतमीजी से व्यवहार करते हैं जिसकी वहज से सरकारी सदस्य बैठक में हिस्सा नहीं लेते। कोई भी प्रस्ताव पास करने के लिए 7 सदस्यों की उपस्थिति होना जरूरी होता है। जिसमें 6 सदस्य एनजीओ के और चेयरपर्सन को मिलाकर 7 लोग कोई भी प्रस्ताव पास कर सकते हैं। पूनम नटराजन लगभग 8 साल तक इस ट्रस्ट की चेयरपर्सन रहीं। जबकि तीन साल के लिए ही चेयरपर्सन का चयन एक प्रक्रिया के तहत होती है। चेयरपर्सन को जो सुविधाएं मिलती है वह सचिव स्तर की होती है। जिसमें लगभग दो लाख रूपए का वेतन, बंगला, गाड़ी, फोन आदि सुविधाएं जुड़ी हुई होती हैं। ए. के. लाल के अनुसार जब अप्रैल 2013 में वे ट्रस्ट के संयुक्त सचिव नियुक्त किए गए (जिसकी नियुक्ति डीओपीटी कैबिनेट की सिफारिश पर करता है) तो उन्होंने पाया कि यहां पर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का बोलबाला है। उन्होंने अपने छानबीन में कई अनियमितताएं पाई और इसकी लिखित शिकायत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की सचिव स्तुति कक्कड़ और मंत्रालय के दोनों मंत्रियों से भी की। ए. के. लाल ने बताया कि मंत्रालय की सचिव स्तुति कक्कड़ और मंत्रालय ने उनकी शिकायत को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। और हर बार जब ट्रस्ट के चेयरपर्सन की सेवा विस्तार की बात होती थी सचिव स्तुति कक्कड़ पूनम नटराजन का ही सेवा विस्तार पर अपनी मुहर लगा देती थी। यहां सवाल है स्तुति ककक्ड पूनम नटराजन की ही सेवा विस्तार पर क्यों मुहर लगाती रहीं? जबकि डीओपीटी, एसीसी (एप्रूबल फार कैबिनेट कमेटी) और राज्यसभा की कमेटी ने भी मंत्रालय से सवाल खड़ा किया कि एक ही व्यक्ति को बार-बार सेवा विस्तार क्यों दिया जा रहा है? ए. के. लाल के अनुसार पूनम नटराजन और स्तुति कक्कड़ ने मिलकर पूरे घोटाले को अंजाम देती रहीं जिसमें कई करोड़ रूपए जो विकलांगों के कल्याण के लिए खर्च होने थे इन लोगों ने हजम कर लिए। पूनम नटराजन विद्यासागर नामक एक एनजीओ पहले से चलाती आ रहीं थी। इनका कारनामा यहीं खत्म नहीं हुआ। पूनम नटराजन, और स्तुति कक्कड़ ने मिलकर ‘अरूणिम’ नामक एनजीओ बनाया। सरकार को बताया कि यह विकलांगों द्वारा तैयार किए गए उत्पादों का विपणन करेगा। इसका पता भी‘नेशनल ट्रस्ट’ का दिया गया। जबकि एक निजी एनजीओ का पता किसी सरकारी ट्रस्ट के पते पर नहीं दिया जा सकता है।‘अरूणिम’ को तीस करोड़ का भारी भरकम कोष दिलाने के लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में इसकी मंजूरी दिलवाई गयी। सवाल यहां यह भी उठता है कि ‘अरूणिम’ को 30 करोड़ का कोष दिलाने के लिए किसने मदद की? ‘अरूणिम’ को ऑटोनामस बॉडी बताया गया । हांलाकि बाद में जांच किया गया तो पता चला कि यह ऑटोनामस बॉडी नहीं है यह एक अवैध संस्था है और इसके लिए दिए जाने वाले 30 करोड़ रूपए की राशि को रद्द कर दिया गया। आपको स्तुति के बारे में थोड़ा और बताते हैं। स्तुति कक्कड़ और पूनम नटराजन की दोस्ती बहुत पुरानी बतायी जाती है। पूनम नटराजन जो शुरू से एनजीओ चलाती आ रही थीं उनकी दोस्ती स्तुति कक्कड़ से उस समय से है जब स्तुति कक्कड़ नेशनल हैंडीकैप फाइनेंशियल कार्पोरेशन जो संबंधित मंत्रालय का विभाग है, की प्रबंध निदेशक और संयुक्त सचिव थीं। पूनम नटराजन ने स्तुति कक्कड़ से मिलकर ऐनकेन प्रकाणेन वित्तीय सहायता जमकर हासिल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। नेशनल ट्रस्ट के संयुक्त सचिव रहे और मामले को उजागर करने वाले ए. के लाल. का कहना है कि ‘नेशनल ट्रस्ट’ को पिछले तकरीबन 6 सालों में पूनम नटराजन ने बर्बाद कर दिया और इनका पूरा साथ संबंधित मंत्रालय की सचिव स्तुति कक्कड़ (अब सेवानिवृत्ति) ने दिया।मजे की बात यह है कि ए. के लाल द्वारा की गई शिकायत को ‘कैग’ और ‘राज्यसभा’ की एक ‘समिति’ ने अपनी जांच में नेशनल ट्रस्ट में हो रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को सही पाया। इसके बावजूद ताज्जुब है कि इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इस भ्रष्टाचार की दूसरी कड़ी भारत सरकार के ‘डीओपीटी’ से जुड़ती है। क्योंकि डीओपीटी (कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग) विभाग जो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन आता है, ने 22-10-2014 को एक पत्र लिखा जिसमें 31-12-2014 तक पूनम नटराजन का एक बार फिर सेवा विस्तार कर दिया गया। सवाल उठता है कि बार-बार पूनम नटराजन की शिकायत करने के बाद इनका सेवा विस्तार क्यों किया जाता रहा, क्या अऩ्य लोग भी इस भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं? बाद में मीडिया में मुद्दा आने के बाद 24-10-2014 को न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने उनका इस्तीफा क्यों स्वीकार कर लिया? सवाल उठता है कि 22-10-2014 को पूनम नटराजन का सेवा विस्तार 31-12-2014 (जबतक कोई नया न आ जाए) तक किया जाता है और दो ही दिन बाद उनका इस्तीफा ले लिया जाता है। आखिर इसके पीछे क्या गणित और कारण है? विकलांगों के कल्याण के लिए बनाए गए ‘नेशनल ट्रस्ट’ में वर्षों तक घोटाला होता रहा और पूनम नटराजन जैसे लोग पैसा डकारते रहे और न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और केंद्र सरकार का प्रशिक्षण एवं कार्मिक विभाग ने इस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। ऐसे में जबकि वह विभाग सीधे ऐसे प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ है जो भ्रष्टाचार के सख्त खिलाफ है। जनवरी 2014 के बाद पूनम नटराजन का सेवा विस्तार नहीं हुआ तो प्रश्न यहां यह भी खड़ा होता है कि उनका त्याग पत्र कैसे स्वीकार कर लिया गया? यही नहीं स्तुति कक्कड़ जो 31 दिसंबर 2014 को सेवानिवृत्त हुई उन्होंने 26 दिसंबर 2014 को खुद को ‘नेशनल ट्रस्ट’ की चेयरपर्सन कैसे घोषित कर लिया? सवाल यहां पर यह भी है कि क्या डीओपीटी के अधिकारी प्रधानमंत्री के कड़क मिजाज को नजर अंदाज करके अपने काम को अंजाम दे रहे हैं? और इस सब का खामियाजा एक ऐसे अधिकारी ए. के. लाल को भुगतना पड़ रहा है जिसने इस पूरे भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए जंग छेड़ रखी है। नेशनल ट्रस्ट के घोटाले के इस पूरे प्रकरण ने फिलहाल मोदी सरकार की पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है

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