Monday, April 18, 2011

जूठे बर्तन मांज कर जीवन गुजार रहा है आजादी का परवाना

फतेहाबाद(अनिल लाम्बा) भारत की स्वतंत्रता के लिए दो बार पाक जेलों में रहने, अपनी जमीन घर खोने वाले स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह उर्फ कुलदीप सिंह निवासी नही कॉलोनी रतिया अपनी पत्नी के साथ लोगों के घरों में जूठे बर्तन मांजने को मजबूर है-जबकि इस स्वतंत्रता सेनानी के दो बेटे पल्लेदारी करते है। हरियाणा के इस आजादी के परवाने की, जहां नंबर वन हरियाणा में ऐसी दुर्दशा है, वहीं मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंह हुड्डा के पिता श्री रणबीर सिंह हुड्डा को स्वतंत्रता सेनानी होने पर इतना सम्मान मिला है कि उसकी याद को तरोताजा रखने के लिए इंडस्ट्रियल इस्टेट तक बनाई जा रही है। 1962 के ताम्रपदक के इलावा पंजाब सरकार ने कोई सुविधा नहीं दी, जबकि हरियाणा प्रदेश के गठन के 45 वर्ष उपरांत भी किसी ने इस स्वतंत्रता सेनानी की सुध नहीं ली। ''न्यूजप्लॅस" को एक मुलाकात में राम सिंह ने बताया कि उनका जन्म पाकिस्तान के जिला लायलपुर के ग्राम नडिनमा में हुआ था। 13 अप्रैल 1919 को जलियां वाले बाग में वह महात्मा गांधी का भाषण सुनने गये थे और वहां उसने जनरल दरिंदगी अपनी आंखों से देखी। इस घटना में जान बचाने उपरांत राम सिंह में देश को आजाद कराने का जज्बा ओर बढ़ गया और वह पंजाब के सोहना सिंह बखना के साथ देश को आजाद करवाने की मुहिम में जुट गए। ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें एक वर्ष के लिए लाहौर जेल में बंद कर दिया। 1923 में गिरफ्तारी उपरांत जनरल डायर ने उनके ग्राम नडिनमा में उनकी 25 एकड जमीन और पुश्तैनी मकान को भी जब्त कर लिया। राम सिंह के अनुसार 1924 में उनके पिता को ग्रामीणों ने ब्रिटिश सरकार के दवाब के चलते ग्राम निकाला दे दिया और वह ग्राम के अठानवे में आकर बस गये। 1925 में राम सिंह रावलपिंडी जेल में जुहडकाना मंडी के 900 लोगों के साथ एक साल जेल में बंद रहे। 1947 में भारत-पाक विभाजन के बाद राम सिंह सपरिवार सोहन सिंह बखना के साथ उनके ग्राम बखना(पंजाब) में आ गये, जहां वर्ष 1962 में पंजाब सरकार ने उन्हें ताम्रपदक देकर सम्मानित किया। वर्ष 1964 में वह मंडी शाहबाद मारकंडा में आकर बस गये, जहां वह 6 वर्ष रहने उपरांत पानीपत के ग्राम बरसत में 13 वर्ष रहें। 1984 में वह दिल्ली में थे, परंतु सिखॅ दंगों के कारण वह दिल्ली से रतिया आकर बस गये। इस दौरान उन्होनें हरियाणा सरकार से स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा देने की मांग की, मगर उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई। कमाई का कोई साधन न होने के कारण उन्हें लोगों के घरों जाकर बर्तन मांजकर गुजारा करना पड़ रहा है। रतिया में एक किराये के मकान में रह हर इस स्वतंत्रता सेनानी की आर्थिक स्थिति मजबूत न होने के चलते वह अपने दोनों बेटों को पढ़ा नहीं सके, जिस कारण वह पल्लेदारी करते है।

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