खाप,हुड्डा सरकार और संवैधानिक संकट
करनाल (अनिल लाम्बा) मनोज-बबली काण्ड में सजा सुनाने वाली जज को मांगने पर भी सुरक्षा प्रदान न कर पाने वाली हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट से कहा है कि खाप अपनी जगह सही हैं,उनसे निबटने के लिए किन्हीं नए कानूनों की ज़रूरत नहीं है. सरकार की तरफ से ये हलफनामा तब आया है कि जब पति पत्नियों को भाई बहन की तरह रहने की हिदायतें और गाँव बिरादरी छोड़ जाने के फरमान बदस्तूर जारी हैं.
खापों से डरी हुई सरकार कह रही है कि बेकायदगी से निबटने के लिए पहले से जो कानून हैं वे ही कुछ कम नहीं हैं. ऐसे में किन्हीं नए कानूनों की क्या ज़रूरत है?..सरकार ने ये नहीं बताया कि क़ानून जब काफी हैं तो फिर खाप के फरमान आज भी जारी क्यों हो रहे हैं? क्यों मनोज और बबली की हत्या के बाद से भी कई जोड़ों को अदालत से आकर सुरक्षा मांगनी पड़ रही है. क्यों सप्रीम कोर्ट को ये कहना पड़ा है कि जहां कहीं फिर माहौल खराब हुआ तो उसकी जवाबदेही वहां के डीसी और एसपी की होगी. ज़ाहिर है सरकार का फैसला और अदालत से उसकी फ़रियाद क़ानून व्यवस्था के अनुरूप कम, राजनीति से प्रेरित और प्रभावित ज्यादा है. हरियाणा सरकार केंद्र के उस मसौदे से भी ना-इत्तेफाकी जता चुकी है जिसमें सजा के प्रावधान सख्त करने की बात कही गई थी. जिसमें ये भी कहा जा रहा था कि खापें कोई कानूनी मान्यता नहीं रखतीं और इस लिए उन्हें किसी भी तरह की सुनवाई और सजा का अधिकार नहीं है. या यूं कहें कि हरियाणा की कान्ग्रेसी सरकार की खुद केंद्र में अपनी सरकार के प्रस्तावित प्रारूप से सहमत नहीं थी. कह सकते हैं कि हुड्डा सरकार दिल्ली दरबार के दिमाग से चल कर हरियाणा में खापों के हाथों पिटना नहीं चाह रही थी. हाँ,सच तो यही है.हुड्डा सरकार ने हाई कोर्ट में अब ये हलफनामा डर के मारे दिया है. वो सच में खापों से पंगा नहीं लेगी.उसने नहीं लिए है जब पुरानी सीआरपीसी थी.वो नहीं लेगी भले जब नई दंड संहिता बन जाएगी. उसे अदालत की दुत्कार मंज़ूर है. क़ानून का राज चले या न चले. चले तो जैसे भी चले. हाँ,सच तो यही है.हुड्डा सरकार ने हाई कोर्ट में अब ये हलफनामा डर के मारे दिया है. उसे अदालत की दुत्कार मंज़ूर है. क़ानून का राज चले या न चले. चले तो जैसे भी चले. दरअसल,खापों की खुदागिरी और अदालतों की लताड़ में सरकार पिस इस लिए रही है कि उसने सही समय पे सही फैसले नहीं लिए. और अब बहुत देर हो चुकी है. देखा जाए तो टकराव था नहीं,हो जाने दिया गया है. खापें सिर्फ गोत्र विवाह नहीं चाहती थीं. और उनकी ऐसी सोच हाल फिलहाल में नहीं बनी थी. उनकी ये परम्परा पुराने ज़माने में उनके पूर्वजों के समय चली आ रही थी. खुद हुड्डा या उनके परिवार में कभी किसी ने हुड्डा गोत्र में शादी नहीं की. उसी गोत्र में शादी अब भी नहीं होने से कोई परिवार या समाज का विकास नहीं रुक जाने वाला था. फिर जाट ही क्यों,देश की लगभग सभी बिरादरियों में संगोत्र विवाह अमान्य है. इसमें गलत था तो सिर्फ खापों का कानून अपने हाथ में लेना. उसकी रोकथाम हो सकती थी.वे विवाह क़ानून में संशोधन की मांग कर रहे थे.कर देते.क्या मुश्किल थी? वैसे भी तो क़ानून समाज की सोच और मान्यताओं से अलग नहीं हुआ करते. किसी भी देश की न्याय व्यवस्था भी कहाँ चाहती है कि वो ऐसी व्याख्या दे जो समाज के मूल मानकों के अनुरूप न हो. या कहें कि जिसे समाज से मनवाना संभव ही न हो. लेकिन खापों के मांगे मुताबिक़ विवाह अधिनियम में आपने वो संशोधन नहीं किया. संगोत्र विवाह जब वैसे भी होते नहीं आ रहे थे तो संशोधन कर के उसे कानूनी जामा पहना देने में हर्ज़ भी क्या था. नहीं किया. पंचायतें महापंचायतों में परिवर्तित हो गईं और समस्या महासमस्या होती हुई संकट का स्वरुप धारण कर गई. अब आज स्थिति क्या है. आज एक तरह का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है. विशुद्ध कानूनी नज़रिए से देखें तो खाप को या किसी को भी सुनवाई और सजा का अधिकार अदालतें दे नहीं सकतीं. संविधान में खापों को नकार या स्वीकार आप नहीं सकते. अपनी परम्परा के निर्वहन के लिए वे सामाजिक बहिष्कार जैसा भी कुछ करेंगे तो दंड के भागी होंगे. दंड के आदेश पे उनके खिलाफ लाठी गोली भी आप चला नहीं सकते. तो सवाल है कि होगा क्या.क्या होगा जब कल वे फिर किसी की मौत का फरमान जारी करेंगे,अदालत उन्हें सजा देगी और आप कुछ करेंगे नहीं. आप फिर सारी की सारी समस्या अदालती प्रक्रिया पर छोड़ देंगे मनोज-बबली हत्याकांड की तरह और सजा सुनाने वाले जज को मांगने पर सुरक्षा भी नहीं देंगे. क्या लगता नहीं कि सरकार अपनी जिम्मेवारी का सही समय और सही विवेक से निर्वहन करने की बजाय घालमेल,विरोधाभासों और आपसी टकराव की स्थिति पैदा कर रही है?
खाप,हुड्डा सरकार और संवैधानिक संकट
करनाल (अनिल लाम्बा) मनोज-बबली काण्ड में सजा सुनाने वाली जज को मांगने पर भी सुरक्षा प्रदान न कर पाने वाली हरियाणा सरकार ने हाई कोर्ट से कहा है कि खाप अपनी जगह सही हैं,उनसे निबटने के लिए किन्हीं नए कानूनों की ज़रूरत नहीं है. सरकार की तरफ से ये हलफनामा तब आया है कि जब पति पत्नियों को भाई बहन की तरह रहने की हिदायतें और गाँव बिरादरी छोड़ जाने के फरमान बदस्तूर जारी हैं.
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