Monday, June 20, 2011

स्टार न्यूज़ के खिलाफ सायमा माइनोरिटी कमीशन पहुंची स्टार न्यूज़ के आला अधिकारी चाहे जितने तिकड़म भिड़ा ले, राहत नहीं मिलने वाली है

स्टार न्यूज़ के खिलाफ सायमा माइनोरिटी कमीशन पहुंची 
स्टार न्यूज़ के आला अधिकारी चाहे जितने तिकड़म भिड़ा ले, राहत नहीं मिलने वाली है 

स्टार न्यूज़ ने सायमा के साथ जो अन्याय किया उसके खिलाफ सायमा सेहर अब माइनोरिटी कमीशन में पहुँच गयी है | माइनोरिटी कमीशन में स्टार न्यूज़ और यौन उत्पीड़न के आरोपी अविनाश पाण्डेय के खिलाफ सायमा ने शिकायत दर्ज करवाई है | सूत्रों की माने तो माइनोरिटी कमीशन ने तत्परता से कार्रवाई करते हुए स्टार न्यूज़ से जवाब - तलब किया है | अब स्टार न्यूज़ को 20 दिनों के अंदर अपना जवाब दाखिल करना है | लेकिन स्टार न्यूज़ क्या जवाब देती है, यह देखना दिलचस्प होगा | टालमटोल करना और लीपापोती करने में स्टार न्यूज़ का कोई जवाब नहीं | एनसीडब्ल्यू में यह सारा खेल वो पहले भी खेल चुका है | लेकिन इस बार मामला अलग है और माइनोरिटी कमीशन का रवैया कड़ा लग रहा है | यदि मेरी बातों को अन्यथा नहीं लिया जाए तो मेरा यह मानना है थोडा बहुत महिलाओं का शोषण या उन्हें परेशान किया जाना बहुत जरूरी है | इसलिए क्योंकि हम सब की जिंदगी में थोडा बहुत दर्द का आना - जाना जरूरी है | वही इंसान बढ़ता है जिसे थोडी परेशानियाँ होती हैं | पर यह सब एक सीमा के अंदर ही होना चाहिए | महिलाऐं थोडी नाज़ुक होती हैं इसलिए उनके लिए थोड़े बहुत काँटों से भरे क्षण होने चाहिए | यह कांटे बहुत जरूरी हैं | पत्रकारिता की राह इतनी आसान नहीं होती यह काँटों से भरी राह है और इसमें नाज़ुक बनने से काम नहीं चलेगा | मैं यह मानती हूँ कि वो लोग खुशनसीब होते हैं जो नाजुक नहीं होते हैं , हाँ बड़े घरों के बच्चे नाजुक होते हैं तो अच्छे लगते हैं | लेकिन पत्रकारिता में बहुत बड़े घरों के बच्चे नहीं आये. पत्रकारिता एक ऐसा पेशा है जिसमें पैसे तो कम मिलते ही हैं साथ संघर्ष करने के लिए भी सदैव तैयार रहना पड़ता है | तो हमलोग क्यों यह मानकर चलते हैं कि हमें सोने का या चांदी का चम्मच मिलेगा | लेकिन दूसरी तरफ मैं यह भी कहूँगी कि शोषण करने वाले का स्वागत नहीं किया जाना चाहिए | शोषण करने वाले की आँखों में देखकर यह कहने की हिम्मत भी होनी चाहिए कि हम आपको अपना शोषण नहीं करने देंगें | 
महिला पत्रकारों के लिए कांटे भरे क्षण जरूरी 
मैं पहले यह मानती थी कि मीडिया में महिलाओं का शोषण नहीं होता है. लेकिन अब मैं पूरी तरह से मानती हूँ कि मीडिया में महिलाओं का बहुत शोषण होता है. इससे पहले मैंने यह बात कभी नहीं मानी थी और न कभी किसी से कही थी. क्योंकि मुझे ऐसा कभी नहीं लगा था. लेकिन अब मुझे लगने लगा है. वैसे महिलाओं का शोषण लगभग हर स्तर पर होता है. अकेले मीडिया को हम क्यों जिम्मेदार ठहराएँ. बाकी जगहों पर भी ऐसा ही कुछ है. यहाँ तक की घर की चारदीवारी से होता है. बड़े घरों में भी महिलाओं का शोषण होता है लेकिन वह रिपोर्ट नहीं होता है. मीडिया में महिलाओं का शोषण होता है लेकिन वह दूसरे तरह का शोषण है. अब मीडिया में महिला ही महिला का शोषण उस तरह से नहीं करती है. कुछ हद तक पुरुष शोषण करता है लेकिन बहुत हद तक शोषण करने के लिए उसको उस तरह के आधार की जरूरत होती है जो इतनी आसानी से नहीं मिलता. जैसे कि कुछ एक जगहों पर एक - दो लोगों को निकाला गया जिनपर यह आरोप लगे कि उन्होंने किसी महिला का शोषण करने की कोशिश की. इसके अलावा कुछ जगह पर महिलाओं की आपत्ति और उनकी शिकायत पर सम्बंधित पुरुष सहकर्मी पर कार्यवाई हुई. यानि सुधार करने की कोशिश की गयी.

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