Wednesday, January 25, 2012

"सहमा सा मजदूर-किसान" खादी-खाकी दोनों में ही, बसते हैं शैतान।

"सहमा सा मजदूर-किसान" 

खादी-खाकी दोनों में ही, बसते हैं शैतान।

अचरज में है हिन्दुस्तान! 

अचरज में है हिन्दुस्तान!!

तन भूखा है, मन रूखा है खादी वर्दी वालों का,

सुर तीखा है, उर सूखा है खाकी वर्दी वालों का,

डर से इनके सहमा-सहमा सा मजदूर-किसान!

अचरज में है हिन्दुस्तान! 

अचरज में है हिन्दुस्तान!!

खुले साँड संसद में चरते, करते हैं मक्कारी,

बेकसूर थानों में मरते, जनता है दुखियारी,

कितना शानदार नारा है, भारत बहुत महान!

अचरज में है हिन्दुस्तान! 

अचरज में है हिन्दुस्तान!!

माली लूट रहे हैं बगिया को बन करके सरकारी,

आलू,दाल-भात महँगा है, महँगी हैं तरकारी,

जीने से मरना महँगा है, आफत में इन्सान!

अचरज में है हिन्दुस्तान! 

अचरज में है हिन्दुस्तान!!

मानवता-मर्यादा घुटती है खादी के बानों मे,

अबलाओं की लज्जा लुटती है सरकारी थानों में,

खादी-खाकी की केंचुलियाँ, सचमुच हैं वरदान!

अचरज में है हिन्दुस्तान! 

अचरज में है हिन्दुस्तान!! (अनिल लाम्बा)

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