भारतीय क्रिकेट टीम की प्रायोजक सहारा ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड "बीसीसीआई" और इंडियन प्रीमियर लीग "आईपीएल" से अपना नाता तोड़ लिया है.
सहारा इंडिया परिवार वर्ष 2001 से लगातार टीम इंडिया का आधिकारिक प्रायोजक रहा है.
वर्ष 2010 में सहारा इंडिया परिवार ने आख़िरी बार तीन साल के लिए 400 करोड़ रूपए की बोली लगाकर क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप ली थी.
सहारा के इस कदम को बीसीसीआई के लिए आर्थिक झटका माना जा रहा है.
सहारा की ओर से जारी बयान में कहा गया है, 'हम बीसीसीआई के अधीन आने वाले सभी तरह के क्रिकेट से हट रहे हैं.'
सहारा का कहना है 'टीम इंडिया के साथ हमारा जुड़ाव शुरुआती दौर में भावनात्मक रहा और इसी तरह खत्म भी हो गया. यह समूचे सहारा इंडिया परिवार के लिए सम्मान की बात है. 2001 में क्रिकेट में उतना पैसा नहीं था लेकिन अब यह हमारे देश का धर्म बन चुका है.
बीसीसीआई ज़िम्मेदार
सहारा का बयान
"टीम इंडिया के साथ हमारा जुड़ाव शुरुआती दौर में भावनात्मक रहा और इसी तरह खत्म भी हो गया. यह समूचे सहारा इंडिया परिवार के लिए सम्मान की बात है. 2001 में क्रिकेट में उतना पैसा नहीं था लेकिन अब यह हमारे देश का धर्म बन चुका है."
सहारा ने रिश्ता टूटने के लिए बीसीसीआई को ज़िम्मेदार ठहराया है.
सहारा ने वर्ल्ड कप की जीत में हीरो रहे युवराज सिंह के प्रति सहानुभूति नहीं दिखाने के लिए बीसीसीआई की आलोचना की है.
युवराज सिंह के मामले पर सहारा का कहना था, 'युवराज का अभी इलाज चल रहा है. हमने बीसीसीआई से अनुरोध किया था कि हम युवराज की जगह पर सौरव गांगुली को पुणे टीम में रखना चाहते हैं लेकिन बोर्ड ने नियमों का हवाला करते हुए ऐसा करने से मना कर दिया. हमें ऐसा लग रहा है कि हमारे साथ धोखा हुआ है, इसलिए हमने बोर्ड से रिश्ता तोड़ने का फैसला किया.'
कंपनी का कहना कि वो बीसीसीआई से कोई टकराव नहीं मोल लेना चाहती है, इसलिए वह बोर्ड से रिश्ते खत्म कर रही है.
सहारा की प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अब वो देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए 20 केंद्रों की स्थापना करेगी.
सहारा के मुताबिक कंपनी हर साल दस करोड़ रुपए ऐसे खेलों और खिलाड़ियों को बढ़ावा देने में लगाएगी जो पीछे छूट गए हैं.

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