Sunday, April 29, 2012

क्या वाकई भगत सिंह को गांधी ने मारा ?

दिल्ली (वरुण आर्या) : गांधी जी चाहते तो भगत सिंह को बचा सकते थे...नहीं बल्कि यूं कहा जाए कि गांधी चाहता तो भगत सिंह को बचा सकता था। भगत को चाहने और मानने वाले लोगों के बीच यह जुमला काफी इस्तेमाल होता है। हालांकि ऐसा कहने वालों में से अधिकतर नहीं जानते कि ऐसा क्यों कहा जाता है और भगत सिंह को गांधी जी कैसे बचा सकते थे। फिर भी लोग ऐसा कहते हैं। मानते भी हैं। लेकिन क्या वाकई भगत सिंह को गांधी ने मारा भगत ने जेल से कई चिट्ठियां लिखी थीं। उन्हीं में एक में उन्होंने लिखा था कि भगत सिंह मर नहीं सकता। अंग्रेज एक भगत सिंह को फांसी पर लटकाएंगे तो हजारों-लाखों भगत सिंह पैदा होंगे। इसलिए आप लोग इस बात का मलाल मत कीजिए कि अंग्रेज सरकार भगत सिंह को फांसी पर लटकाने जा रही है। भगत को जब फांसी दी गई तो वह एक इंसान एक क्रांतिकारी या एक देशभक्त नहीं थे। वह एक सोच थे जिसने लोगों के दिल-ओ-दिमाग में घर कर लिया था। वह एक जज्बा थे जो हर खून में उबाल ले रहा था। वह एक अहसास थे जिसे उस वक्त हर इंसान जी लेना चाहता था। इसीलिए अंग्रेज भगत सिंह को मार नहीं सके। तो फिर भगत सिंह को किसने मारा भगत सिंह की मौत के लिए गांधी को कोसने वालों ( और नहीं कोसने वालों) के भीतर क्या भगत सिंह नाम की वह सोच वह जज्बा वह अहसास जिंदा है?  सरेआम एक प्रफेसर का कत्ल कर दिया जाता है। गवाही देने वालों के लाले पड़ जाते हैं। सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में हुई घटना का एक भी गवाह नहीं। क्या वे सब लोग अन्याय के खिलाफ लड़ने का आह्वान करने वाले भगत सिंह के कातिल नहीं हैं भरी पार्टी में जेसिका लाल का कत्ल होता है। लेकिन कातिल को किसी ने नहीं देखा। क्या वे लोग भगत सिंह के कातिल नहीं हैं रेप तो अपराध हो गया लेकिन चलते लड़कियों को छेड़ने तानाकशी करने वाले और भीड़ में चोरी से छूने की कोशिश करने वाले लोगों को क्या कहा जाएगा क्या वे भगत सिंह के कातिल नहीं हैं करीब-करीब हर रोज हजारों लोगों को इसलिए नीचा देखना पड़ता है क्योंकि वे छोटी जाति के लोग हैं। पांच दलितों को जिंदा जलाया खबर का सिर्फ हेडिंग देखकर छोड़ देने वाले हम नौजवान क्या समान समाज का सपना देखने वाले भगत सिंह के कातिल नहीं हैं मराठीबिहारीसाउथ इंडियननॉर्थ इंडियनपंजाबीगुजराती के नाम पर बहस करने वाले क्या उस भगत सिंह के कत्ल में शामिल नहीं हैंजिसने सारी दुनिया के एक हो जाने का ख्वाब देखा था ये तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें हैं। बिना टिकट सफर ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पुलिसवाले को 50-100 रुपये देकर छूटना लाइन में न लगना पड़े इसलिए किसी की सिफारिश ढूंढना कोई बड़ा काम आन पड़े तो जुगाड़ ढूंढना वोट देने से पहले सोचना कि यह हमारी जाति का है या हमारे काम करवाएगा या नहीं वगैरह तो अब अपराध है ही नहीं। क्या इस तरह भगत सिंह कत्ल नहीं होता भगत सिंह तो सब चाहते हैंलेकिन पड़ोसियों के घर। इस कहावत को सुनकर हंस देने वाला हर आदमी क्या भगत सिंह का कातिल नहीं है ?

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