इन्द्री/करनाल, (इंडिया विसन) : फसलों के विविधिकरण में किसानों का रूझान बे मौसमी सब्जियों के उत्पादन की तरफ भी बढऩे लगा है। सरकार द्वारा दी जा रही वित्तिय सहायता और अनुदान के चलते किसानों ने पोली हाऊस बनाकर बे मौसमी सब्जियां पैदा करनी शुरू कर दी है। वैसे तो प्रदेश में कई ऐसे जागरूक किसान है जो सरकार की सहायता से या फिर स्वयं के प्रयासों से पोली हाऊस बनाकर बे मौसमी सब्जियां पैदा करने में जुटे है, ऐसे ही किसानों में शामिल है, पूर्व सेना अधिकारी किसान परमजीत सिंह जो अपने खेत में पोली हाऊस बनाकर बे मौसमी सब्जियां पैदा करेगा।
हरियाणा सरकार द्वारा उद्यान विभाग के माध्यम से किसानों के लिए अनुदान पर कई प्रकार की सुविधाए दी जा रही है। एक एकड़ में पोली हाऊस बनाने के लिए लगभग 38 लाख रूपये खर्चा आता है। उद्यान विभाग ऐसे पोली हाऊस बनाने के लिए 65 प्रतिशत अनुदान देता है। यह अनुदान पोली हाऊस की संरचना, पीलर, पोली सीट इत्यादि पर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त पोली हाऊस में सुक्षम सिंचाई प्रोजेक्ट पर 90 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान है। सुक्षम प्रोजेक्ट में ड्रिप यानी टपका सिंचाई, फव्वारा सिंचाई तथा पोली हाऊस में नमी बनाने के लिए फोम की व्यवस्था इत्यादि शामिल है। पोली हाऊस में कम तापमान पर सब्जियां पैदा करने के लिए बागवानी विभाग द्वारा प्रति वर्ग मीटर पर 53 रूपये के हिसाब से तथा गुलाब के फुल के उत्पादन के लिए प्रति वर्ग मीटर पर 250 रूपये अनुदान देेने का प्रावधान है। किसान परमजीत सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाते हुए अपने खेत में 1008-1008 यानी 216 वर्ग मीटर के दो पोली हाऊस उद्यान विभाग की सहायता से तैयार कर रहा है, जिनमें लगभग सभी प्रकार की बेमौसमी सब्जियां तैयार की जायेगी। अपने खेत में आधा एकड़ जमीन में उद्यान विभाग की सहायता से पोली हाऊस तैयार कर रहे किसान परमजीत को विभाग द्वारा दी जाने वाली अनुदान राशि सम्बन्धित विषय पर जिला उद्यान अधिकारी मदन लाल तथा विभाग के विकास अधिकारी डी.पी. सैनी ने बताया कि इन पोली हाऊस के निर्माण कार्य पर लगभग 19 लाख रूपये खर्चा आयेगा और लगभग साढ़े छ: लाख रूपये किसान की हिस्सेदारी रहेगी और बाकी खर्चा उद्यान विभाग द्वारा अनुदान के रूप में किया जायेगा।
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि गत वर्ष जिला में 10 किसानों को इस प्रकार के पोली हाऊस स्थापित करने के लिए लाखों रूपये का अनुदान दिया जा चुका है। चालू वित्त वर्ष में चार किसानों के प्रस्ताव आए है जिनमें विभाग की सहायता से तीन किसानों के पोली हाऊस बनाने का कार्य जारी है। इस वर्ष लाभार्थी किसानों की संख्या अधिक हो सकती है। इस स्कीम के तहत लाभ लेने वाले पूर्व सेना अधिकारी किसान परमजीत से भी मुलाकात की गई। उन्होंने बताया कि वह संघठित खेती करने में रूची रखता है इसलिए अपने खेत पर फसलों के विविधिकरण की संस्कृति अपनाते हुए बागवानी, नर्सरी, पशुपालन, मत्स्य पालन तथा मुर्गी पालन की ओर भी विशेष ध्यान दिया है ताकि छोटी जोत के किसान भी पराम्परागत फसलों के उत्पादन की अपेक्षा कोई अन्य कार्य करके आय के अतिरिक्त साधन जुटा सके।
किसान ने अपने खेत में एक नर्सरी भी तैयार की है जिसमें लगभग सभी तरह के सजावट के पौधे व फुल तैयार किये जाते है। जहां बेरोजगारों को भी रोजगार के अवसर मिले है। नर्सरी एक ऐसा क्षेत्र है इस क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए कई युवाओं ने पहल की है जिनमें कैथल जिले के गांव क्योडक निवासी नरेन्द्र तंवर भी है, जो फार्म में नर्सरी तैयार कर रहा है। नरेन्द्र बताता है कि उसने बागवानी प्रंबंधन के क्षेत्र में चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, करनाल, यमुनानगर में प्रशिक्षण लिया और अब वह बागवानी के क्षेत्र में अपने आपको एक सफल व्यवसायी मान रहा है। इस दिशा में अन्य बेरोजगार युवक भी रोजगार पा सकते है। इन्द्री करनाल सड़क मार्ग पर स्थापित नर्सरी में इस युवा बेरोजगार ने न केवल स्वयं को रोजगार दिया है बल्कि दर्जनों युवकों को भी यहां चल रहे कार्य से रोजगार मिल रहा है।
यहां स्थित नर्सरी में पापुलर के साथ-साथ सजावटी पौधों को भी तैयार किया जाता है। गत दो वर्षों से लगभग आठ एकड़ जमीन में चलाई जा रही नर्सरी में विभिन्न प्रकार के सजावटी, फलदार और फुलदार पौधे भी तैयार किये जाते है जिनमें अरोकेरिया, अडनियम(कलर),अगेव,अलमण्डा, बोगनबेला, गोल्डन बोटल ब्रश, कोपर बोटल ब्रश, बम्बो(बांस), बोनसाई पौधा, चाइना ओरेंज, साइकस पांम, करोटोन, सिफोरथिया, चान्दनी, चमेली, नोलिना, बोटल पांम, रविनया पांम,
फूशिकस पांम, सिलबर यूका, सिजनल फलावर, सोंश ओफ इण्डिया, डराइसिनथा(रोजिया), फाइक्स, भनीप्लांट, मोटियां, हमेलिया, अमरूद, आम, लीची, किन्नू, संतरा, बेर, आलूबखारा, अंगूर, केला, चीकू, सहतूंत, कटहल इत्यादि शामिल है।
इतना ही नही इस नर्सरी में ग्लेडुला, स्टीक भी तैयार की जाती है। इस स्टीक को तैयार करने के लिए हरियाणा सरकार के बागवानी विभाग द्वारा ग्लेडुला का बीज जिसे बल्फ की गांठे भी कहा जाता है, निशुल्क उपलब्ध करवाया जाता है। एक पेटी में एक हजार से 1200 तक गांठे होती है। बाजार में एक गांठ की कीमत चार से पांच रूपये तक होती है। एक बल्फ से केवल एक स्टीक तैयार होती है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि एक बल्फ के नीचे चार से पांच गांठे निकलती है जो उत्पादक को रूंगे के रूप में मुफ्त मिलती है। एक एकड़ में इस प्रकार की खेती के लिए 40 से 50 हजार रूपये खर्चा आ जाता है। इस नर्सरी से हरियाणा के साथ-साथ हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, युपी तथा उतराख्ंड राज्यों में भी इसकी सप्लाई की जाती है।
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